Class 4, Lesson 5: याकूब के अंतिम दिन

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गुरूवार, 21 दिसंबर 1899 को, कॅन्सास शहर की एक सभा को जल्द समाप्त करके, तबियत खराबी के साथ लौटते हुए डी.एल मूडी ने उनके परिवार से कहा, ‘‘मैं निराश नहीं हूँ। मैं तब तक जीना चाहता हूँ जब तक मैं उपयोगी हूँ, परंतु जब मेरा काम खत्म हो जाए, तो मैं उठा लिया जाना चाहता हूँ।’’ अगले दिन मूडी व्याकुल रात बिताने के बाद उठे। नपे-तुले सावधानीपूर्वक शब्दों में उन्होंने कहा, ‘‘पृथ्वी हिल रही है, स्वर्ग मेरे सामने खुल गया है।’’ उनके पुत्र विल ने सोचा कि उनके पिता स्वप्न देख रहे है। ‘‘नहीं, यह कोई स्वप्न नहीं हैं,’’ मूडी ने कहा। विल, यह बहुत सुन्दर दृष्य है। यह एक समाधि लेने के समान है। यदि यह मृत्यु है, तो यह मधुर है। यहाँ कोई घाटी नहीं है। परमेश्वर मुझे बुला रहा है, और मुझे अवश्य जाना चाहिये।’’ यहोवा के भक्तों की मृत्यु उसकी दृष्टि में अनमोल है। आइये हम देखें कि याकूब के अंतिम दिन कैसे थे। अपने जीवन के अंतिम वर्षों में याकूब अपने परिवार के साथ मिस्त्र में रहता था। वह ऐसा रहता था जिसका मिस्त्र का राजा भी सम्मान करता था। याकूब द्वारा फिरौन को दिया गया जवाब कि उसकी उम्र कितनी है, उसने कहा था, ‘‘मेरी यात्रा के वर्ष 130 है।’’ सचमुच, जो व्यक्ति उसके जीवन को एक तीर्थयात्रा समझता है, उसने इस संसार को अपना वास्तविक घर नहीं माना था। हम भी इस संसार में यात्री हैं। हमारा वास्तविक घर यहाँ नहीं है। यह जानना कि स्वर्ग ही हमारा घर है, आनंद की बात है। आइये हम इस संसार में यह सोचकर जीएँ कि हम केवल यात्री ही हैं। सत्रह वर्षों के बाद याकूब मिस्त्र में मर गया और अपनी यात्रा पूरी किया। उत्पत्ति की पुस्तक 47 से 50 अध्याय याकूब के अंतिम दिनों के बहुत से विवरण देते हैं, उसकी मृत्यु और दफन के भी। उसके पितरों का भी ऐसा विवरण नहीं दिया गया है। अब्राहम और इसहाक के विषय केवल इतना लिखा है कि वे दीर्घायु होकर मरे थे (उत्पत्ति 25:8,35:29)। जब याकूब जान गया कि उसका अंत निकट था तो उसने यूसुफ को बुलाया और कहा कि उसे मिस्त्र में नहीं परंतु उसे वापस कनान में दफनाए जहाँ उसके पितरों को दफनाया गया था। यूसुफ ने उसके पिता से प्रतिज्ञा किया कि वह ऐसा ही करेगा। यूसुफ के दो बेटे थे, मनश्शे और एप्रैम। यूसुफ ने उन्हें अपने पिता के पास लाया कि वह उन्हें आशीष दे। उन्हें आशीष देने के पहले याकूब ने उन्हें अपने पुत्र स्वीकार किया। इसीलिये जब इस्त्राएल के गोत्रों के विषय कहा जाता है तब एप्रैम और मनश्शे के गोत्रों का नाम भी अन्य गोत्रों के साथ लिया जाता है। प्रधान मंत्री के पुत्र होने के कारण उन्हें वहाँ उच्च स्थान मिल सकता था, परंतु याकूब अच्छी तरह जानता था कि उनके लिये उनके भाइयों के साथ गिना जाना बेहतर था जो परमेश्वर के चुने हुए लोग थे, बजाय मिस्त्र में महान बनने के। यूसुफ भी इस बात से सहमत था। कई वर्षों के बाद मूसा ने भी मिस्त्र की गद्दी के वारिसदार होने के हक को छोड़ दिया और परमेश्वर के लोगों के साथ दुख उठाना बेहतर समझा (इब्रानियों 11:24)। याद रखें कि मसीह की फटकार संसार की समृद्धियों से बेहतर है। जब याकूब ने लड़कों को आशीष दे दिया तब उसने अपने हाथों को उन पर ऐसा रखा कि उसका दायाँ हाथ एप्रैम पर और बायाँ हाथ मनश्शे के सिर पर था। यूसुफ ने सोचा कि उसके पिता ने गलती किया, परंतु याकूब जानता था कि वह क्या कर रहा है। परमेश्वर ने छोटे लड़के को बड़ी आशीष के लिये चुना था जैसे उसने याकूब को उसके बड़े भाई एसाव के सामने चुना गया। जब परमेश्वर चुनता है, वह केवल बाहरी रूप नहीं देखता। वह हर्दय को देखता है। (1 शमुएल 16:7)। याकूब ने अपने अन्य पुत्रों को भी आशीष दिया। उसके अंतिम शब्द उनके गोत्रों के विषय भविष्यवाणियाँ थीं। इनमें से सबसे महत्वपूर्ण भविष्यवाणी यहूदा के विषय थी। इस आशीष में उसने शीलोह के आने की बात कहा था। यह हमारे प्रभु यीशु मसीह के आगमन के विषय थी जो यहूदा के गोत्र से जन्म लेने वाला था। याकूब ने उसके पुत्रों को याद दिलाया कि परमेश्वर उनके पास आएगा और उन्हें उस देश में ले जाएगा जिसकी प्रतिज्ञा उसने उसके पितरों से किया था (उत्पत्ति 48:21)। परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं पर याकूब के मजबूत विश्वास को देखें फिर याकूब ने अंतिम सांस लिया। वह कितनी महिमामय मृत्यु थी। अपने रिश्तेदारों और मित्रों को पीछे छोड़कर, परमेश्वर की संतानों की मृत्यु उस स्थान की यात्रा है जहाँ मसीह रहता है। यह परमेश्वर की दृष्टि में अनमोल है। मिस्त्र के वैद्यों ने याकूब के शरीर को खाली कर रासायनिक पदार्थों से लेप लगाकर सुरक्षित किया। ऐसा शरीर बिना सड़े लंबे समय के लिये सुरक्षित रहता है। बड़े शोक के साथ याकूब के पुत्रों ने उसके शरीर को उसके निर्देशानुसार कनान ले गए और उसे मकपेला की गुफा में दफना दिया। यहीं पर अब्राहम और उसकी पत्नी सारा, इसहाक और उसकी पत्नी रिबका और याकूब और उसकी पत्नी लिया दफन थे (उत्पत्ति 23;49:31-33)।

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