Class 3, Lesson 5: याकूब कैसे इस्राइल बना ?

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याकूब और लाबान शांतिपूर्वक अलग हो गये जैसा कि हमने पूर्व पाठ में देखा था। याकूब कनान की ओर बढ़ने लगा । क्या आप जानते हैं, वह क्यों बीस वर्ष पहले इस स्थान को छोड़कर चला गया था ? क्योंकि वह अपने भाई से भयभीत था । बीस वर्ष बाद वह इस बात से भयभीत था कि यदि वह एसाव से मिला तो न जाने वह क्या करेगा । उसे भय था कि एसाव उसे एवं उसकी पत्नियों बच्चों तथा उसके दासों एवं पशुओं को हानि पहुँचाऐगा । इसलिए याकूब ने एक दूत को एसाव के पास यह संदेश पहुँचाने के लिए भेजा कि वह उससे मिलने आ रहा है । एसाव ने भी इसके पीछे यह संदेश भेजा कि वह भी अपने चार हजार जनों के साथ उससे (याकूब) मिलने के लिए आ रहा है । तब याकूब और भी अधिक भयभीत हो गया । अतः उसने एसाव के लिए भेड़ों एवं अन्य पशुओं का एक भेंट तैयार कर उसे अपने आगे भेज दिया । उसी रात उसने अपनी पत्नियों बच्चों, दासों एवं पशुओं को नदी के पार उतार कर स्वयं उस पार अकेले ही रह गया और वहाँ प्रार्थना करने लगा । जब हम किसी चीज से भयभीत हो तो हमें परमेश्वर के पास आना चाहिए जैसा की याकूब ने किया और परमेश्वर अवश्य ही हमारी सहायता करेंगे । जब वह अकेला अकेला था तो एक पुरूष आकर पौ फटने तक उससे मल्लयुद्ध करता रहा । वास्वत में वह परमेश्वर का एक स्वर्गीय दूत था फिर भी वह याकूब पर प्रबल नहीं हो पा रहा था, इसलिए उसने याकूब की जाँघ की नस को छुआ ओर उसे चढ़ा दिया । तब स्वर्ग दूत ने कहा "मुझे जाने दे, क्योंकि भोर हुआ जाता है।" परन्तु याकूब ने कहा "जब तक तू मुझे आशीर्वाद न दे, तब तक मैं तुझे जाने न दूँगा ।" क्या आप जानते हैं कि परमेश्वर का संतान होने के कारण हमें यह अधिकार है कि हम परमेश्वर से अच्छी चीजों की माँग करें । जब हम किसी अच्छी चीज की माँग करते हैं तो परमेश्वर हमारी प्रार्थना को अवश्य ही सुनेगें । तब स्वर्गदूत ने कहा, ”तेरा नाम अब याकूब नहीं, परन्तु इस्राइल होगा, क्योंकि तू परमेश्वर से और मनुष्यों से भी युद्ध करके प्रबल हुआ है, और उसने उसको आशीर्वाद दिया ।

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