Class 3, Lesson 39: फिलप्पी दारोगा

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दारोगा को आदेश दिया गया था, कि पौलुस और सीलास को अच्छी सुरक्षा में रखें, इसलिए उसने उन्हें भीतरी कोठरी में रखा था और उनके पाँवों को जंजीरो से जमीन में बाँध दिया था । इस दुःखदायी परिस्थिति में पौलुस और सीलास सो न सके यद्यपि आधी रात बीत चुकी थी । अतः वे परमेश्वर की स्तुति-आराधना करने लगे और जोर-जोर से परमेश्वर से प्रार्थना करने लगे और अन्य कैदी उन की सुन रहे थे । अचानक वहाँ एक भुईडोल हुआ । वह इतना तेज था, कि बन्दीगृह की नेव हिल गई और तुरन्त सब द्वार खुल गए और सब के बन्धन खुल पड़े । दारोगा जाग उठा और वह बन्दीगृह के द्वार खुले देखकर समझा, कि बन्धुए भाग गए हैं और उसे दण्ड दिया जाएगा, सो उसने तलवार खींचकर अपने आप को मार डालना चाहा । परन्तु पौलुस ने उँचे शब्द से पुकारकर कहा, ”अपने आप को कुछ हानि न पहुँचा, क्योंकि हम सब यहाँ हैं ।“ तब दारोगा दीपक मँगवाकर भीतर गया और काँपते हुए पौलुस के आगे गिरा । उसने पौलुस और सीलास को बंदीगृह से बाहर निकालकर कहा, ”हे साहिबों, उद्धार पाने के लिये मैं क्या करूँ ।“ पौलुस ने तब दारोगा को सुसमाचार सुनाया । आप जानते हैं, कि सुसमाचार उद्धारकत्र्ता प्रभु यीशु मसीह का शुभ संदेश है । जो लोग सुसमाचार से घृणा करते हैं, यीशु के नाम से घृणा करते हैं । पौलुस ने कहा, ”प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास कर, तो तू और तेरा घराना उद्धार पाएगा ।“ पौलुस ने दारोगा और उसके परिवार के लोगों को और उस रात जितने लोग उसके 86 घर में थे, सबों को सुसमाचार सुनाया और वे उसी रात बपतिस्मा भी लिये । दारोगा ने बंदियों के घावों को धोया और उनके आगे भोजन रखा और सारे घराने समेत आनन्द किया ।जब दिन हुआ तो हाकिमों ने दारोगा को कहला भेजा, कि बंदियों को छोड़ दो ।

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