Audio | Prayer | Song | Instrumental |
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अब्राहम तम्बू में रहनेवाला एक परदेशी था जो अपने पशुओं के झुण्ड के साथ एक स्थान से दूसरे स्थान में भटकता (घुमता) रहता था । जब कनान देश में अकाल पड़ा तो वह अपने परिवार और पशुओं के झुण्ड के साथ मिस्र देश में चला गया जहाँ पर्याप्त भोजन और पानी था । वहाँ सारा ने हाजिरा नाम की एक लड़की को अपनी दासी होने के लिए खरीदा एवं जब अब्राहम कनान देश वापस आया तो हाजिरा भी सारा के साथ आयी । यह हाजिरा के लिए एक बड़ी आशीष की बात थी, कि वह एक ऐसे परिवार में जुड़ गयी, जो जीविते परमेश्वर से प्रार्थना करने वाले थे, न कि एक मूर्ति से । अतः वह भी जीवित परमेश्वर के विषय में जान गयी । समय बीतता गया, अब्राहम बहुत ही धनी व्यक्ति बन गया और उसने बहुतों को अपना दास एवं दासी बना लिया । उसके पास भेड़-बकरी एवं गाय बैलों का एक बहुत बड़ा झुण्ड इकट्ठा हो गया । तौभी उसके जीवन में एक बड़ा दुःख था, उसकी पत्नि सारा की कोई संतान नहीं थी। क्या आप जानते हैं कि बच्चे माता-पिता के जीवन में कितनी खुशियाँ लाते हैं ? जैसे-जैसे सारा की उम्र ढलने लगी उसमें संतान प्राप्ति की आशा और भी घटने लगी । और उसने अपनी इच्छा को पूरी करने के लिए एक योजना तैयार की, उसने अब्राहम से कहा, कि वह हाजिरा को अपनी पत्नि के रूप में स्वीकार कर ले । इब्राहीम ने वैसा ही किया जैसा सारा ने कहा था और तब शीघ्र ही हाजिरा को यह मालूम हो गया, कि वह एक बच्चे को जन्म देनेवाली है । इससे वह घमंड से भर गयी और अपनी स्वामिनी को भी तुच्छ समझने लगी ।उसके इस बर्ताव से सारा अत्यंत क्रोधित हो गयी और हाजीरा के साथ दुर्व्यवहार करने लगी, सारा के व्यवहार से हाजिरा काफी दुःखित होकर घर से भाग गयी, परन्तु बाहर जंगल में एक स्वर्गदूत उसके पास आया और उसे सांत्वना दिया । बच्चों स्मरण रहे, जब हम बहुत दुःख में हो परमेश्वर सदा हमारी सहायता करते हैं । तब स्वर्गदूत ने हाजिरा से कहा सारा के पास लौट जा और उसी के ही अधीन रह । स्वर्गदूत ने हाजिरा से यह वायदा भी किया, कि वह एक पुत्र को जन्म देगी जिसका नाम अवश्य ही "इश्माएल" रखा जाना चाहिए जिसका अर्थ है "परमेश्वर सुननेहारा" एवं परमेश्वर उसे एक महान राष्ट्र का पिता बनायेगा । यह वायदा पूरा हुआ और इश्माएल के संतान एक महान राष्ट्र बनें । इश्माएल की आयु चौदह वर्ष थी जब सारा से इसहाक को जन्म हुआ । अब्राहम के दोनों संतान एक ही तम्बू में बढ़ने लगे पर शीघ्र ही वहाँ कई समस्या उत्पन्न हो गयी । इश्माएल ने इसहाक के लिए कई समस्याएँ खड़ी कर दी, जिससे सारा दुःखी और क्रोधित हो गयी और उसने अब्राहम से निवेदन किया, कि हाजिरा एवं इश्माएल को तम्बू से बाहर निकाल दे ।अब्राहम को यह बात बहुत ही बुरा लगी, परन्तु परमेश्वर ने उसे ऐसा ही करने के लिए कहा । अब्राहम ने हाजिरा को बुलाया और थोड़ी रोटी और पानी देकर उसे और उसके पुत्र को दूर देश भेज दिया । हाजिरा और इश्माएल बाहर जाकर बेर्शेबा के जंगल में भटकने लगे, जब उनका पानी खत्म हो गया तो वे प्यास से तड़पने लगें और ऐसा लगने लगा, कि इश्माएल प्यास से मर जायेगा, उसकी माँ रोने लगी और परमेश्वर से प्रार्थना करने लगी, परमेश्वर ने उसकी प्रार्थना सुनी और पुनः एक स्वर्गदूत को उसके पास सांत्वना देने के लिए भेजा । उसने पुनः उसे परमेश्वर का वायदा का स्मरण दिलाया और उसे एक जल का स्त्रोत दिखला दिया । हाजिरा एवं इश्माएल ने धीरे-धीरे मरूभूमी में रहना सीख लिया और इश्माएल बुद्धिमान तथा एक महान धनुर्धारी बन गया । बाद में उसने अपनी माँ के देश की एक स्त्री से विवाह किया, बच्चों, क्या आपको उस देश का नाम याद है ? उसके बारह पुत्र एवं एक पुत्री थी । आधुनिक विश्व में अरब के विस्तृत क्षेत्र में इश्माएल के ही वंशज निवास करते हैं और इस तरह परमेश्वर का वायदा हाजिरा के लिए पूरा हुआ । इसी तरह परमेश्वर ने अपने चुने हुओं से जो भी वायदा किया, वह पूरा हुआ है । हम इसके विषय में बाद में अध्ययन करेंगे ।
स्तुति आराधना ऊपर जाती है, आशिष देखो नीचे आती है , प्रभु हमारा कितना महान देखो हमसे करता है प्यार हाल्लेलू! हाल्लेलूइया! बिनती और प्रार्थना ऊपर जाती है, उत्तर लेकर नीचे आती है।