Class 2, Lesson 9: याकूब मिस्र में

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याकूब ने अपनी यात्रा आरंभ की और बेरशेबा पहुँचा | वहाँ परमेश्वर ने फिर से उससे बातें कीं और कहा , " मिस्र में मत डर , में तेरे संग चलूँगा और वहाँ आशीष दूँगा |" अत : याकूब अपने सभी पुत्रों और उनके परिवार समेत मिस्र में आ गया | जब वे करीब पहुँचे , तब यूसुफ अपने रथ मे उनसे मिलने और अपने पिता का स्वागत करने गया | वे एक दूसरे के गले लगकर रोए |अंतत याकूब को शांति मिली | फिरौन ने यूसुफ से कहा की मिस्र देश में जो सबसे भूमि है वह अपने परिवार को दे दो | यूसुफ ने उन्हें गोशेन देश दे दिया , जहाँ उनके पशुओं के लिए चारागाह की बहुतायत थी , और वे वहाँ बस गए |यूसुफ अपने पाँच भाइयों और पिता फिरौन के सम्मुख ले गया | फिरौन ने याकूब का अभिवादन किया और उससे उदारता से व्यवहार किया ,और उन्होंने जो चाहा सब कुछ दिया |याकूब 17 वर्ष मिस्र में रहा ,और उसका परिवार फला -फुला और बहुत बढ़ गया | कुछ समय के पश्चात यूसुफ को समाचार मिला की उसका पिता बीमार है | याकूब की उम्र अब 147 वर्ष थीं |यूसुफ अपने दोनों पुत्रों ,मनशशे और एप्रैम को लेकर अपने पिता से मिलने गया |याकूब की आँखें धुंधली हों गईं थीं और वह बहुत कमजोर हो गया था ,परन्तु जब उसने यूसुफ के आने का समाचार सुना तो उठ कर बैठ गया |उसने को परमेश्वर की वे प्रतिज्ञाएँ स्मरण दिलाईं जो लूज में परमेश्वर ने उसे दि थीं |और फिर उसने यूसुफऔर उसके पुत्रों को आशीर्वाद दिया | जब यूसुफ लड़कों को उनके दादा के पास लाया तब उसने मनशशे को याकूब के दाहिने हाथ की तरफ रखा क्योंकि वह बड़ा था |परन्तु याकूब ने अपने दाहिने हाथ को एप्रैम के सिर पर रखा जो छोटा था , और बाएं हाथ को मनरशे के सिर पर जो रखा जो बड़ा था | उसने यूसुफ को दुगनी आशीष दि और कहा कि ," तेरे पुत्र इस्राएल के गोत्र के मुखिया होंगे ,परन्तु एप्रैम , मनशशे से महान होगा |" याकूब ने यूसुफ से वादा करवाया कि उसके शरीर को प्रतिज्ञा के देश कनान में इब्राहीम के साथ दफनाया जाएगा | फिर अपनी मृत्यु से से पहले उसने अपने सभी पुत्रों को आशीर्वाद दिया |

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