Class 2, Lesson 8: यूसुफ और भाई

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मिस्र के राजा फिरौन ने एक स्वप्न देखा ,परन्तु ऐसा कोई नहीं मिला जो उस स्वप्न का अर्थ बता सके |उस समय यूसुफ स्वप्न का अर्थ बताने वाले के रूप में जाना जाता था ,इसलिए उसे फिरौन के सामने लाया गया |राजा के स्वप्न का अर्थ था ,की सात वर्ष बहुत अधिक उपज के होंगे और उसके बाद के सात वर्ष अकाल पड़ेगा |फिरौन स्वप्न का अर्थ सुनकर बहुत प्रसन्न हुआ और यूसुफ को अपने देश प्रधानमंत्री बना दिया |जैसा यूसुफ ने कहा था ,सात वर्ष बहुतायत के आए ,जिसके दौरान यूसुफ की सलाह से अनाज को एकत्र करके भंडार घरों में रखा गया |सात वर्ष के बाद सब देशों में अकाल पड़ा जो सात वर्षों तक चला |अन्य देशों के लोग अनाज खरीदने के लिए मिस्र आने लगे |याकूब ने भी अपने 10 पुत्रों को मिस्र भेजा |वह प्रधानमंत्री के पास आए ,परन्तु नहीं जानते थे कि वह कौन है | दसों भाइयों ने झुककर यूसुफ को दंडवत किया ,और अनाज के लिए विनती की |उन्होंने यूसुफ को नहीं पहचाना परन्तु यूसुफ उन्हें पहचान लिया |यूसुफ ने उनके साथ अजनबी की तरह व्यवहार किया और उन पर जासूस होने का दोष लगाया |यूसुफ ने उनसे अनेक प्रशन पूछे क्योंकि वास्तव में वह अपने पिता और छोटे भाई बिन्यामीन के बारे में जानना चाहता था |उसने उन्हें कारागार में डाल दिया ,परन्तु तीसरे दिन छोड़ दिया | यूसुफ ने अपने सेवकों से कहा कि उनके बोरों को अनाज से भर दो और हर एक के रुपए को भी बोरे में रख दो |उसने उन्हें यह कहकर भेज दिया कि यदि फिर से आओगे ,तो उन्हें अपने साथ बिन्यामीन को भी लाना होगा |वे खुशी से चले गए |रास्ते मे रुककर जब एक गदहे को चारा देने के लिए अपना बोरा खोला तो उसको अपने रुपए दिखाई पड़े |वे सब अत्यंत डर गए कि अब उन पर चोरी का दोष लगेगा | घर पहुंचकर उन्होंने अपने पिता को सारी बातें बताईं |कुछ समय बाद जब मिस्र से लाया हुआ अन्न समाप्त हो गया ,तब याकूब ने उन्हें फिर से मिस्र जाकर अन्न लाने को कहा| उन्होंने अपने पिता से कहा कि यदि हम जाएंगे तो बिन्यामीन को अवश्य साथ ले जाना होगा |याकूब बहुत दुखी हो गया |उसने यूसुफ को खो दिया था , और अब डरता था कि सबसे छोटे पुत्र के साथ भी कुछ दुर्घटना ना हो जाए |उसकी अति प्रिय पत्नी रिबका से उसके दो ही पुत्र थे यूसुफ और बिन्यामीन | जब वे मिस्र पहुँचे ,तो दूसरे भाइयों के साथ बिन्यामीन को देखकर यूसुफ बहुत प्रसन्न हुआ |उसने अपने घर के अधिकारी को आज्ञा दी , कि वह उन सबके लिए भी भोजन का प्रबंध करे | यूसुफ के भाइयों को जब यूसुफ के घर पहुँचाया गया तब वे बहुत डर गए ,और उन्होंने यूसुफ के घर के अधिकारी को उन रुपयों के बारे में बताया जो उनके बारे में मिला था ,उन्होंने कहा ,"हम उन रुपयों को अपने साथ लाए हैं| और अन्न खरीदने के लिए और रुपए भी लाए हैं | हम नहीं जानते के वे रुपए हमारे बोरे में किसने रखे |"उसने उन से कहा कि चिन्ता न करें और उसने उनको पाँव धोने के लिए पानी दिया ,और उनके गदहों के लिए चारा भी दिया |दोपहर को यूसुफ आया और बिन्यामीन का अभिवादन किया और उनके पिता का हाल चाल पूछा फिर वे भोजन करने बैठे | सवेरे यूसुफ ने उन्हें भेज दिया परन्तु वह उनकी और परीक्षा लेना चाहता था | उसने उनके बोरे अन्न से भरवाए और अपना सोने का प्याला बिन्यामीन के बोरे में रखवा दिया |वे नगर से निकले ही थे कि यूसुफ ने अपने घर के अधिकारी को उनके पीछे भेजा |अधिकारी ने उन पर दोष लगाकर कहा , "क्यों तुम लोगों ने भलाई के बदले बुराई की हैं ? मेरे स्वामी के सोने का प्याला चुराकर तुमने गलत किया |"उन्होंने स्वयं को निर्दोष बताकर कहा ,"तेरे दासों में से जिस किसी के पास वह निकले ,वह मार डाला जाए और हम सब अपने प्रभु के दास हो जाएंगे |"यूसुफ के घर के अधिकारी ने कहा ,"तुम में से जिसके पास वह निकलेगा ,वह मेरा दास होगा ,और तुम सब निरपराध ठहरोगे " उसने उनके बोरों की तलाशी ली ,और कटोरा बिन्यामीन के बोरे में निकला | बिन्यामीन को अकेले दासता के लिए भेजे बगैर ,वे सभी उसके साथ वापस यूसुफ से कहा कि यदि हम बिन्यामीन को लिए बगैर वापस जाएँ तब तो हमारे पिता शोक में मार जाएगा | जब यूसुफ ने अपने पिता और बिन्यामीन के प्रति उनकी परवाह और प्रेम देखा तो ,स्वयं को भाइयों पर प्रकट करने से पहले सभी दासों और मिस्रीयों को कमरे से बाहर निकाल दिया |उसने भाइयों से कहा ,"मैं यूसुफ हूँ |" तब वे सब रोए और एक दूसरे से गले मिले |यूसुफने अपने भाइयों से कहा ,"तुमने मेरे साथ बुरा व्यवहार किया ,परन्तु परमेश्वर ने इसे अपने मित्र इब्राहीम के वंश को सुरक्षित रखने का कारण बनाया |"यूसुफ ने अपने भाइयों को गाड़ियाँ ,और भोजनवस्तु से लदी गदहियाँ भी दीं ,ताकि वे जाकर उसके पिता याकूब को और समस्त परिवार को लेकर वापस मिस्र आ जाएँ ,जहाँ पर अकाल के दिनों में भी अन्न बहुतयत से थे |

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