Class 2, Lesson 4: इब्राहीम और लूत

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Lesson Text

इब्राहीम और लूत ,दोनों ही बहुत अमीर हो गए | उनके पास भेड़ों और पशुओं का इतना बड़ा झुण्ड हों गया कि उनके चरवाहे चारागाह के लिए आपस में झगड़ा करने लगे | इस बात से इब्राहीम दुखी हुआ | वह परमेश्वर का जन था ,और मेल से रहना चाहता था | अत : इब्राहीम ने लूत से कहा ," हम भाई हैं ,और हमें झगड़ा नहीं करना चाहिए |यह देश बहुत बड़ा है ,अत : हम एक दूसरे से अलग होकर रहें |" इस बात पर सहमति हों गई | अब जगह चुनने की बात आई |इब्राहीम ने लूत को पहले चुनने कि आजादी दी |हम देखते हैं कि वरिष्ठ होने के बावजूद भी इब्राहीम ने नि : स्वथरता और नम्रता दिखाई | बच्चों ,यहाँ हमारे लिए एक अच्छा उदाहरण है | लूत इस विचार से खुश था | वे ऊँचे स्थान पर थे ,इसलिए वह भूमि का सही अवलोकन कर सका | उसने यरदन नदी से सिंची हुई तराई को देखा , और अपने जानवरों के लिए सही चारागाह देखकर उसे चुन लिया , और पूर्व की और चला गया | वह तराई वाले नगरों में रहा और सदोम की तरफ अपना तंबू खड़ा किया | दूसरी ओर , इब्राहीम कनान देश में रहने लगा |कितनी आसानी से उसने समस्या को सुलझाया | लूत को अपना भाई मानने के कारण इब्राहीम ने सावधानी बरती कि उसे ठेस न पहुंचे |दोनों ही जीवते परमेश्वर की सेवा करते थे | इब्राहीम के लिए सभी धन -दोलत से कीमती उसकी गवाही थी ,अत : उसने परमेश्वर के नाम का अनादर न होने की सावधानी बरती |

Excercies

Song

क्या ही भली और मनोहर बात है , भाई लोग मिलकर रहें , आहा हेरमोन पहाड़ की औस के समान , यह कितनी सोहावनी है । , एक पिता की संतान है हम , एक ही मिराज के सांझी है हम , आहा , मृत्यु या जीवन भी हमको कभी , अलग कर ना सकेंगे । इकट्ठा संगति मनाते रहना हमको , है कितना मन भावता , लेकिन श्रेष्ट पिता की आज्ञा मानकर हम , खुशखबरी सुनने जाए घर घर।