Class 2, Lesson 2: बाबेल का मीनार

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नूह के तीन पुत्रों से तीन जातियाँ बन गईं और वे तेजी से बढ़ने लगे |वे एक ही भाषा बोलते थे |पुर्व दिशा में बढ़ते हुए वे शिनार पहुंचे और समतल भूमि पाकर वहाँ बस गए |उन्होंने ईंटों बनाना ,दीवारें ,घर और गुम्मट बनाना सीख लिया |फिर उनके मन में एक विचार आया| उन्होंने कहा , " आओ ,हम एक गुम्मट वाला शहर बना लें ,जिसकी उचाईं आकाश तक होगी ,ताकि हम अपने लिए नाम कमाएं और हमें सारी पृथ्वी पर फैलना ना पड़े |" शिनार देश के मैदान में उन्होंने गुम्मट बनाना आरंभ किया , और उनका कार्य देखने के लिए परमेश्वर स्वर्ग से उतर आए |अपने ही तरीके से स्वर्ग तक पहुँचने के उनके परियत्न को देखकर परमेश्वर दुखी हुए | वे लोग अपने बारे में ही सोच रहे थे |उन्हें अपनी योग्यता पर घमण्ड था , और वे परमेश्वर को भूल गए |आज भी ऐसा ही होता है | अपने आत्मविश्वास और अभिमान के कारण मनुष्य परमेश्वर को भूल जाते हैं | परमेश्वर ने उनकी भाषा में गड़बड़ी डालने का निश्चय किया, ताकि वे एक दूसरे की बात समझ ना सकें | और जब परमेश्वर ने ऐसा किया, तब वे अपने निर्माण कार्य को जारी नहीं रख सके | और कार्य को बंद करना पड़ा | फल स्वरूप वे एक दूसरे से अलग हो गए और पृथ्वी में फैल गए | परमेश्वर ने नूह को आज्ञा दी थी, कि तुम संख्या में बढ़ जाओ और पृथ्वी पर फैल जाओ, परंतु उनकी भाषा में गड़बड़ी होने तक उन्होंने परमेश्वर की आज्ञा का पालन नहीं किया | विभिन्न भाषाओं के शोर ने इतनी गड़बड़ी फैला दी कि उन्हों ने उस स्थान का नाम बाबुल रखा, जिस का अर्थ है "गड़बड़ी" |

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