Class 2, Lesson 19: राजा शाऊल

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परमेश्वर ने शमूएल से कहा ,"लोगों ने तेरा नहीं मेरा ही तिरस्कार किया है ।उन्हें राजा दे दो ,परन्तु यह चेतावनी भी दे देना कि यह उनके लिए अच्छा नहीं होगा।"शमूएल इस विषय में बहुत दुखी था ,परन्तु उसने इस्राएलियों की इच्छानुसार बिन्यामीन गोत्र के शऊल को इस्रएल का पहला राजा होने के लिए नियुक्त किया ।लोग अत्यंत प्रसन्न थे और चिल्लाए ,"राजा चिरंजीव रहे !" शाऊल ने अच्छी शुरूआत की |उसने अम्मोनियों और अन्य शत्रुओं पर इस्राएलियों को विजय दिलाई |परन्तु उसने परमेश्वर की सभी आज्ञाओं को नहीं माना । एक बार उसने बलिदान चढ़ाया ,जो केवल एक याजक को ही करना चाहिए था।और एक बार परमेश्वर ने उसे आज्ञा दी थी कि सारे अमालेकियों को उनके पशुओं समेत नाश करो , परन्तू शऊल ने उस आज्ञा का पालन भी पूर्ण रूप से नहीं किया । उसनए उनके राजा अगाग को और अच्छे पशुओं को भी जीवित छोड़ा । जब शमूएल शाऊल के पास आया ,तो शाऊल ने कहा ,"तुझे यहोवा की ओर से आशीष मिले ,मैंने यहोवा की आज्ञा पूरी की है । "शमूएल ने पूछा ,"फिर भेड़ बकरियों का यह मिमियाना और गाय -बैलों का यह बंबाना जो मुझे सुनाई देता है ,यह क्यों हो रहा है ?"शाऊल ने उत्तर दिया ,"प्रजा के लोगों ने अच्छी से अच्छी भेड़ -बकरियों और गाय -बैलों को तेरे परमेश्वर यहोवा के लिए बलि करने को छोड़ दिया है ,और बाकी सब को तो हम ने सत्यानाश कर दिया है । "शमूएल ने उत्तर दिया ,"तूने ऐसा क्यों किया ?क्या यहोवा होमबलियों और मेलबलियों से उतना प्रसन्न होता है ?सुन मानना तो बलि चढ़ाने से ,और कान लगाना मेढ़ों की चर्बी से उत्तम है । शाऊल ने मान लिया कि उसने पाप किया ,परन्तु उसका मन परिवर्तन नहीं हुआ था । परमेश्वर ने दूसरे राजा का अभिषेक करने के लिए शमूएल को भेजा ।

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