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आज हम सीखेगें उस बड़े बाढ़ के विषय में जो परमेश्वर ने पृथ्वी पर लोगों की दुष्टता के कारण लाया। हम सीख चुकें हैं कि कैन की सन्तान बढ़ती गई और उन्होंने अपने लिए नगर बसाए । वे परमेश्वर से प्रीति नहीं रखते थे और दुष्टता के लिए ही जीवन व्यतीत करते थे। शेत की सन्तान भी बढ़ती गई और पहले तो परमेश्वर के मार्ग पर चलते थे परन्तु थोड़े समय के बाद वे भी परमेश्वर से मुड़ गए। सारे जगत में इतनी बुराई भर गई थी कि परमेश्वर लोगों को सजा दिए बगैर रह नहीं सकते थे। पाप का अन्त हमेशा मृत्यु ही होता है। उन दिनों के लोगों के बीच नूह रहता था, जो धर्मी था और परमेश्वर के साथ चलता था। वह हनोक के परिवार से था। परमेश्वर ने उस से कहा कि वह उस पीढ़ी के लोगों को एक बड़े बाढ़ के द्वारा नाश करनेवाला है। परन्तु नूह पर परमेश्वर की कृपा दृष्टि हुई। परमेश्वर ने नूह से कहा कि वह तीन छत वाला जहाज बनाए, जिसमें एक खिड़की और एक द्वार हो। नूह ने जहाज को परमेश्वर की आज्ञा अनुसार बनाकर उसके बाहर और भीतर पानी से बचाने के लिए उस पर राल लगाया। नूह द्वारा जहाज बनाने के समय परमेश्वर ने लोगों को मन फिराव का भरपुर समय दिया। जहाज बनाते हुए नूह ने करीब सौ वर्षों तक मन फिराव का प्रचार किया। उसने लोगों को चेताया कि परमेश्वर धर्मी है और उनकी दुष्टता का परिणाम उनका विनाश होगा। लेकिन उसकी बातों पर किसी ने ध्यान देकर मन नहीं फिराया। परमेश्वर के अनुगह्र का समय समाप्त हो गया। मतुशेलह की आयु सब से अधिक थी, परन्तु उसके पिता ने कहा था, “उसके मरने पर वैसा होगा ” अब उसके मरने का समय आ गया था, जहाज तैयार हो चुका था और न्याय आनेवाला था। परमेश्वर ने नूह को आज्ञा दी कि सभी प्राणियों को दो दो करके जहाज में लेना, ( शुद्ध पशु और पक्षियों को सात सात कर के लेने को कहा ) उसे सब के लिए भोजन का प्रबन्ध करने को कहा गया। हर एक प्राणी नूह के पास आए और जहाज में चले गए। तब नूह अपने तीनों बेटे और बहुओं के साथ जहाज मे गया, और परमेश्वर ने द्वार बन्द किया। नूह के बेटों के नाम शेम, हाम और यापेत थे । उस समय नुह की आयु 600 वर्ष की थी। सात दिनों के बाद भारी वर्षा होने लगी और चालीस दिनों तक होती रही। गहरे जल के सोते भी खोले गए।आकाश के झरोखे भी खुल गए। जल से पृथ्वी भर गई और जहाज पानी मे तैरते हुए उठने लगा । पहाड़ भी पानी में डूब गए और हर जीवित प्राणी मर गए । मनुष्यों के साथ पशु, पक्षी और रेंगने वाले जन्तु भी मर गए। एक सौ पचास दिनों तक बाढ़ का असर रहा। तब परमेश्वर ने नूह को याद किया और वायु चलाई। पानी कम होने लगा और जहाज अरारात पहाड़ पर ठहरा । नूह ने कौवे को बाहर भेजा जो पानी के सूखने तक आना-जाना करता रहा। फिर नूह ने कबुतरी को भेजा परन्तु पैर रखने के लिए सूखी भूमि न पाकर वह फिर जहाज में लौट आई। सात दिनों के पश्चात नूह ने उसे फिर भेजा वह सांझ को ही लौटी ओर उसकी चोंच में जलपाई का पत्ता था। इस से नुह ने जाना की पेड़ पानी से बाहर है। सात दिनों के बाद उसने कबुतरी को फिर भेजा, इस बार वह नहीं लौटी। तब नुह ने जहाज को खोलकर बाहर देखा। उसने सूखी भूमि को देखा, परन्तु परमेश्वर से बाहर जाने की अनुमति पाने के लिए उसे आठ सप्ताह तक रुकना पड़ा । तब वह अपने परिवार और सारे प्राणियों समेत बाहर आया। ताकि वे सब पृथ्वी पर फिर बढ़ सके। बाहर निकलकर सब से पहले नूह ने एक वेदी बनाई और शुद्ध प्राणियों का बलिदान चढ़ाया। इसके द्वारा वह बचानेवाले परमेश्वर की आराधना कर रहा था। यद्यपि नूह एक धर्मी व्याक्ति था और कई सालों से परमेश्वर के प्रति विश्वासयोग्य था, वह जानता था कि बलि का लहू बहाए बगैर वह परमेश्वर की आराधना नहीं कर सकता है । परमेश्वर ने नूह की भेंट को स्वीकार किया और वादा किया कि फिर कभी पृथ्वी को जलप्रलय से नाश नहीं करेगा। और अपने इस वाचा के चिन्ह के रुप में इन्द्रधनुष को रखा।
नूह तुम जहाज को जल्दी तैयार करो, भयंकर बारिश बरसेगी जल्दी। आज्ञा मानी उस भक्त ने जहाज को बनाया स्वयं ही ने, जहाज बनाया ठक-ठक-ठक बारिश बरसी टप-टप-टप पानी भर गया ऊपर तक चिल्लाए लोग सब हा-हा-हा नूह-नूह दरवाजा खोल (2) परमेश्वर ने जहाज का दरवाजा बंद किया, नाश हुए ना आज्ञा मानने वाले। उद्धार का जहाज मसीह यीशु जल्दी तू आजा उसी के पास बुला रहा है सब लोगों को उद्धार के जहाज में प्रवेश करने। (2)