Audio | Prayer | Song | Instrumental |
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मरुभूमि के सफर के दरम्यिान इस्राएलियों के छावनी किए हुए दो जगहों के विषय में हम सीखेंगे। उन्हों ने लाल समुद्र के तट से आगे बढकर मरुभूमि में अपनी यात्रा आरम्भ की। मरुभूमि की यात्रा बहुत कठिन होती है। अकसर गर्मी बहुत अधिक होती है, और पानी मिलना कठिन होता है। तीन दिनों तक इस्राएलियों को पानी नहीं मिला। वे काफी प्यासे हालत में मारा नामक जगह पहुंचे। अंत में उनको पानी मिल गया। लोग फूर्ति से पानी पीने गये परन्तु उनको निराशा हाथ लगी। वह पानी कड़वा था, मारा का अर्थ है! कड़वा। लोग थके और प्यासे थे। वे मूसा के विरुद्ध कुड़कुड़ाने लगे। उन्हों ने मूसा से पूछा! “हम क्या पीऐंगे?” मूसा ने परमेश्वर से प्रार्थना की और परमेश्वर ने उसकी सुन ली। परमेश्वर ने मूसा को एक पेड़ दिखाया, जब मूसा ने पेड़ को काटकर पानी में फेंका तो पानी मीठा हो गया।परमेश्वर इस्राएलियों को एक सबक सिखा रहा था। वह मरुभूमि में भी उनकी जरुरतों को पूरी करनेवाला था। यदि वे उस पर विश्वास करें तो वह उनके दुखों को भीआनन्द में बदलनेवाला था। उस स्थान में परमेश्वर ने उन्हे एक आदेश दिया। परमेश्वर ने कहा कि यदि वे उसके वचनों का पालन करेंगे तो वह उन्हे मिस्र की विपत्तियों से बचाए रखेगा। परमेश्वर ने उन्हे ये कहकर तसल्ली दी कि, “मै चंगा करनेवाला परमेश्वर हूं ” इस्राएलियों ने अपनी यात्रा जारी रखकर एलीम को पहुंचे। वह एक सुन्दर उद्यान था, जहां बहुत पानी था। वहां उनको बारह झरने और सत्तर खजूर के पेड़ मिले। उन्होंने वहीं छवनी डाली। प्रभु हमारा चरवाहा है, वह हमें हरी चराइयों में चराता और सुखदायी जल के पास ले चलता है।
मारा रफीदीम में आओगे लेकिन यीशु पर पूरा भरोसा धरो , वहीं ले जाएगा वही बचाएगा वायदा कभी उसका टलता नहीं आनन्द से भरकर जायेंगे हम सब गाते हुए सियोन की तरफ ।