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पवित्र आत्मा पिता परमेश्वर, पुत्र परमेश्वर और पवित्र आत्मा परमेश्वर - यही खुदा की त्रिएकता है। पुराने समय में पिता परमेश्वर नबियों के द्वारा इन्सानों से बातें करते थे। लेकिन वही परमेश्वर देहधारी होकर जगत में आये। वही यीशु मसीह पापों की माफी के लिए सिद्ध बली हुऐ। यीशु मसीह ने जी उठकर स्वर्ग में पहुंचकर पवित्र आत्मा को दुनिया में भेजा। इसके पश्चात् पेन्तिकुस्त के दिन (जो कि 50वें दिन का यहूदिया का त्यौहार है) में पवित्र आत्मा दृश्य रूप में इस दुनियां में आया। पवित्र आत्मा एक शक्ति से बढ़कर एक व्यक्ति है। (युहन्ना 16:8-10) के अनुसार पवित्र आत्मा हमें धार्मिकता, पाप और आने वाले न्याय के विषय में समझाती है। पवित्र आत्मा को कैसे पा सकते हैं:- (रोमियों 10: 9) के अनुसार जो व्यक्ति यीशु मसीह पर विश्वास करते है वे परमेश्वर की संतान बन जाते है ( युहन्ना 1:12 )। उस व्यक्ति पर पिता परमेश्वर,पवित्र आत्मा से मोहर लगाते है। इफिसियों 1: 13-14 में यह बात स्पष्ट है - उसी में तुम पर भी जब तुमने सत्य का वचन सुना, जो तुम्हारे का उद्धार का सुसमाचार है, और जिस पर तुमने विश्वास किया-प्रतिज्ञा किये हुए पवित्र आत्मा की छाप लगी। वह उसके मोल लिए हुओ के छुटकारे के लिए हमारी मीरास का बयाना है कि उसकी महिमा की स्तुति हो। इसका नमूना हैः- प्ररितों 10 में कुरनेलियुस के घर में पतरस के द्वारा सुने हुए सुसमाचार पर अन्यजाति लोगों ने जब विश्वास किया तो उन पर भी दृश्य रूप में पवित्र आत्मा आया। जिन्होंने पवित्र आत्मा पाया है उनके जीवन में आत्मिक फल प्रगट होते है, (गलातियों 5:22-23) पर आत्मा का फल प्रेम, आनन्द, शान्ति, धीरज, कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता और संयम है; ऐसे ऐसे कामों के विरोध में कोई भी व्यवस्था नहीं। प्रभु यीशु मसीह ने भी एक बार ऐसा कहा था कि एक वृक्ष उसके फलों से ही पहचाना जाता है। आत्मा के वरदान पवित्र आत्मा हर व्यक्ति को कुछ ना कुछ आत्मिक वरदान देता है, जिनमें सबसे बड़ा प्रेम है। पवित्र आत्मा के कुछ स्थाई और कुछ अस्थाई वरदान इस प्रकार हैः- उपदेशक, मदद करने का वरदान, प्रचारक, सिखानेवाले (पास्टर), लोगों को आर्थिक मदद करनेवाले, विश्वास इत्यादि ये स्थाई वरदान है। अस्थाई वरदानों में से कुछ वरदान जो कलीसिया की शुरूआत के लिए दिये गये थे इस प्रकार हैं:- प्रेरित बनना, भविष्यद्वाणी, चमत्कार करने का वरदान, चंगाई का वरदान, आत्माओं को परखना, अद्भुत ज्ञान, अन्य बोली और उसका अनुवाद इत्यादि। कुछ वरदान कलीसिया की शुरूआत के समय पर चिन्ह् के रूप में प्रगट तो हुए। लेकिन बाद में वे वरदान मिटते गये और लुप्त हो गये हैं। (1 कुरिन्थियों 13:8) इन दिनों में शैतान बड़ी चालाकी के साथ पवित्र आत्मा की नकल करता है। बंदगियों में गीतों की ध्वनि और शारीरिक कंपनों के द्वारा मानसिक बंधिश (विभ्राती) पैदा करके वह साधारण लोगों को धोखा देता है। हमारा परमेश्वर गड़बड़ी का नहीं पर शान्ति का परमेश्वर है - 1 कुरिन्थियों 14:33 परमेश्वर का पवित्र आत्मा हमें उस (ईश्वर) तक पहुंचाने में सहायक है। वह हमें आत्मिक बातें सिखाता है। मन फिराने में पवित्र आत्मा की भूमिका एक व्यक्ति के जीवन में पाप का एहसास सबसे पहले परमेश्वर की पवित्र आत्मा ही दिलाती है। जब वह व्यक्ति अपने पापों से शोकित होकर रोता है और कहता है- "कि प्रभु मुझ पापी पर दया कर"! तो पवित्र आत्मा उन्हें सिर्फ यीशु मसीह के लहू के द्वारा ही सम्पूर्ण माफी और धार्मिकता है यह बात समझाती है। साथ ही वह उन्हें आने वाले न्याय से और नरक से बचने का रास्ता भी बताती है। इस प्रकार परमेश्वर के बनाये हुए उद्धार को स्वीकार करने में पवित्र आत्मा अहम भूमिका निभाती है। जब कोई व्यक्ति अपने मुंह से उद्धार के लिए एलान करता है और यीशु मसीह को हृदय से स्वीकार करता है तो वह व्यक्ति पवित्र आत्मा के द्वारा संचालित किया जाता है। उस व्यकित का शरीर पवित्र आत्मा का मंदिर हो जाता है, इसलिए उसे शारीरिक इच्छाओं,सांसारिक धोखा और शैतान की चालाकी से बचना चाहिए। इसके लिए उसे प्रतिदिन प्रार्थना एवं बाईबल का अध्ययन करना चाहिए ताकि वह पवित्र आत्मा की मदद से रूकावटों पर विजय प्राप्त कर सके। एक व्यक्ति पवित्र आत्मा पाने के बाद जान बूझकर पाप नहीं करता। लेकिन यदि कोई व्यक्ति पाप में गिर जाए तो उसी समय उसकी माफी मांगनी भी जरूरी है, नहीं तो पवित्र आत्मा परमेश्वर शोकित हो जाता है और उस व्यक्ति का आत्मिक उल्लास खत्म हो जाता है। आत्मा में भरपूर होते जाओ एक व्यक्ति का पवित्र आत्मा परमेश्वर से भर जाना परमेश्वर की इच्छा से है। (इफिसियों:5:18) पर आत्मा से परिपूर्ण होते जाओ। जब कोई व्यक्ति पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो जाता है, तो उसके जीवन में आत्मिक फल दिखाई देते है। वह व्यक्ति हमेशा आनन्द से भजन स्तुति-गीत व आत्मिक गीत गायेंगे, और अपने मन में ही हर बात के लिए परमेश्वर पिता को धन्यवाद करेंगे, और परमेश्वर के भय में एक दूसरे के अधीन रहेंगे यानि नम्र होंगे। परमेश्वर के वचन में स्पष्टता से लिखी हुई बातों का उल्घंन करनेवाला और संसारिक मोह और लालच से भरा हुआ व्यक्ति पवित्र आत्मा के अधीन नहीं है।
मुझमें यीशु की शोभा दिखाई दे, उसका अद्भुत प्यार और वह निर्मलता, हे तू, आत्मा पवित्र! कर शुद्ध मेरा चरित्र, मुझमें यीशु की शोभा दिखाई दे। 2 मुझमें यीशु की शांति दिखाई दे उसकी वह स्थिरता, दीनता और नम्रता, हे तू, आत्मा पवित्र! कर शुद्ध मेरा चरित्र, जब तक मुझमें न शांति दिखाई दे। 3 मुझमें यीशु का सत्य दिखाई दे, उसकी आज्ञाकारिता और धार्मिकता, हे तू, आत्मा पवित्र! कर शुद्ध मेरा चरित्र, जब तक सत्य न मुझमें दिखाई दे। 4 मुझमें यीशु की प्रीति दिखाई दे, उसका अद्भुत आनन्द और निष्कपटता, हे तू, आत्मा पवित्र! कर शुद्ध मेरा चरित्र, जब तक मुझमें न प्रीति दिखाई दे।